Jan 5, 2018 - Media Coverage

The media coverage report for Janmotsav celebrations at YSS Noida Ashram of Guruji's 125th birth anniversary:

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125वीं जयंती:परमहंस योगानंद की शिक्षाओं के मूल में क्रियायोग का विज्ञान

पांच जनवरी को महान आध्यात्मिक विभूति और 'योगी कथामृत' के रचयिता व योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक परमहंस योगानंद जी की 125वीं वर्ष गांठ है। नोएडा आश्रम में इस अवसर पर प्रातः सामूहिक ध्यान के बाद प्रभात फेरी निकली गई, जिसमें भक्तों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।इस दौरान स्वामी ललितानंद जी ने हज़ारों भक्तों को सम्बोधित करते हुए गुरूजी के जीवन व भक्तों के जीवन में उनके महत्व को रेखांकित किया। 

स्वामी ललितानंद जी ने कहा, 'गुरूजी द्वारा प्रदत्त, पवित्र क्रिया योग विज्ञान के माध्यम से, आत्मा के शांत देवालय में, अनन्त चेतना के स्पर्श से, मानवीय कल्पनाओं से परे के आनंद का, स्वयं के लिये अनुभव करें।  मेरी प्रार्थना है कि आप इस जन्मोत्सव से तथा गत वर्ष में आयोजित सभी सुन्दर कार्यक्रमों से आपके द्वारा अनुभव किये गये आत्मिक आनन्द, गुरु के निशर्त प्रेम में बढ़े हुए विश्वास, तथा साधना में लगे रहने के दृढ़ संकल्प को अपने साथ ले जायें।'

कौन थे परमहंस योगानंद?
परमहंस योगानन्द का जन्म 5 जनवरी, 1893 को भारत के गोरखपुर में, एक समृद्ध और धर्मपरायण बंगाली परिवार में हुआ था। उनका नाम मुकुंद लाल घोष था। उनके शुरूआती वर्षों से यह उनके आस-पास के लोगों को यह पता चल गया था कि आध्यात्मिकता का उनका बोध एवं अनुभव, सामान्य से परे थे। एक युवा के रूप में उन्होंने भारत के कई संतों और दार्शनिकों के दर्शन किये, इस आशा में कि उनकी आध्यात्मिक खोज में मार्गदर्शन करने के लिये उन्हें एक प्रबुद्ध गुरु प्राप्त होगा।

1910 में, 17 वर्ष की आयु में, उनकी भेंट सम्मानित भारतीय ऋषि स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी से हुई, जिनके आश्रमों में उन्होंने अपने जीवन के अगले दस वर्षों का अधिकांश हिस्सा बिताया। 1915 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद, वे भारत के सम्मानित संन्यासी संप्रदाय के एक स्वामी बन गये, जिस समय उन्होंने योगानन्द नाम प्राप्त किया (जो योग या दिव्य मिलन के माध्यम से आनंद प्राप्त करने का अर्थ देता है)। योगानन्दजी ने 1917 में एक "आदर्श-जीवन" विद्यालय की स्थापना के साथ अपने कार्य की शुरूआत की जिसमें आधुनिक शैक्षणिक तरीकों के साथ योग प्रशिक्षण और आध्यात्मिक आदर्शों में निर्देश को जोड़ा गया था। 1925 में इस विद्यालय का अवलोकन करने के बाद महात्मा गांधी ने लिखा,"इस संस्था ने मेरे मन को बहुत प्रभावित किया है।"


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