५ जनवरी, २०१७ का दिन नॉएडा आश्रम में न केवल गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानंद जी के १२४ वें जन्मोत्सव के रूप में मनाया गया बल्कि इसे योगदा के शताब्दी समारोह के रूप में भी मनाया गया जिसमें योगदा की स्थापना दिवस से लेकर वर्तमान समय तक हुए योगदा के विकास की गाथा पर दृष्टी डाली गई |
इस विशेष अवसर पर आश्रम परिसर ने कठोर ठंड का बहादुरी से सामना करते हुए लगभग सभी उम्र के भक्तों के एक समुह को उत्साहपूर्वक क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित पंक्तिबद्ध रूप से प्रभात फेरी के लिए तैयार पाया | सुबह ८:१५ बजे भक्तों द्वारा विभिन्न प्रकार के पुष्पों से आकर्षक ढंग से सजाये गए गुरूजी के चित्र को एक पालकी में लेकर प्रभात – फेरी निकाली गयी | सन्यासियों एवं भक्तों द्वारा गाये गए भजनों एवं संकीर्तनों के साथ प्रभात –फेरी में गुरुदेव की पालकी को पूरे आश्रम परिसर की परिक्रमा कराई गयी | यद्यपि यह अल्प अवधि के लिए ही था, परन्तु प्रत्येक भक्तों ने बारी-बारी से पालकी को उठाने का आनंद लिया | इस शोभायात्रा में योगदा सन्यासी भी शामिल रहे | प्रभात–फेरी का समापन पालकी पर विराजमान श्री गुरुदेव के चरणों में भक्तों द्वारा अर्पित पुष्पांजलि से हुआ |
इस शुभ अवसर पर पूरे दिन भक्तों ने गुरुदेव की अनुग्रहपूर्ण उपस्थिति का अनुभव किया तथा गुरुदेव द्वारा भक्तों के माध्यम से किये जाने वाले सभी कार्यो में भक्तों ने उनके मार्गदर्शन को महसूस किया | इस अवसर पर नारायण-सेवा के रूप में लगभग २००० लोगों को प्रसाद वितरित किया गया, जिनमें अधिकांश लोग आर्थिक रूप से निचले तबके से थे | नारायण सेवा में आये सभी लोग, महिलाएं तथा बच्चे पूरी, सब्जी और हल्वा के रूप में प्रसाद लेकर अत्यंत प्रसन्न हुए जो अत्यंत सुखद था |
मुख्य समारोह ५:३० से ८ बजे तक सभागार में आयोजित किया गया | गुरुदेव के जन्मोत्सव एवं शताब्दी समारोह कार्यक्रम के पावन अवसर पर मुख्य अतिथि रामकृष्ण मिशन, दिल्ली के सचिव, स्वामी शांतात्मानंद जी आये थे | आश्रम के मुख्य द्वार पर स्वामी ललितानंद जी द्वारा स्वामी शांतात्मानंद जी का स्वागत परंपरागत भारतीय शैली से माल्यार्पण के साथ किया गया, तत्पश्चात स्वामी ईश्वरानंद जी ने उन्हें पूरे आश्रम परिसर का भ्रमण कराया | योगदा सन्यासियों तथा राजदूत श्री के०एन०बख्शी जी के साथ संक्षिप्त वार्तालाप तथा जलपान के पश्चात स्वामी जी को सभागार में ले आया गया |
विशेष शताब्दी समारोह के संध्याकालीन कार्यक्रम का शुभारम्भ ब्रह्मचारी धैर्यानंद जी द्वारा संचालित ध्यान एक सत्र के साथ हुआ | स्वामी शांतात्मानंद जी का कार्यक्रम में सम्मिलन स्वामी वासुदेवानंद जी द्वारा गाये गए भजन के साथ हुआ | स्वामी हितेशानंद जी द्वारा स्वामी शांतात्मानंद जी को माल्यार्पण से सम्मानित किया गया तथा शताब्दी समारोह कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए औपचारिक रूप से दीप जलाये गए |
योगदा की ओर से राजदूत श्री के० एन० बख्शी जी ने स्वामी शांतात्मानंद जी का स्वागत किया और हमारी प्रिय संघमता एवं अध्यक्षा श्री श्री मृणालिनी माताजी द्वारा इस अवसर पर भेजे गए संदेश को पढ़कर सुनाया जिसमे श्री मृणालिनी माताजी ने योगदा को अपनी हार्दिक बधाई दी, तथा योगदा को संगठित करने एवं इसे एक मजबूत आधार प्रदान करने में श्री श्री दया माताजी की अहम् भूमिकाओं पर प्रकाश डाला |
स्वामी ईश्वरानंदजी ने अपने सभा को संबोधित करते हुए कहा की योगदा के विकास की कहानी 'प्यार' की एक कहानी – अपने भक्तों के लिए भगवान और गुरुओं के प्यार तथा बदले में भक्तों का उनके लिए प्रेम एवं सेवा है’ | उन्होंने कहा कि गुरुजी प्यार के अवतार रहे है, उनके द्वारा स्थापित यह संगठन कुछ और नहीं है, बल्कि उनके दिव्य प्रेम कि एक जीवंत मिसाल है | योगदा / एस. आर. एफ. संगठन बनाने में दुनिया भर के उनके हजारों श्रद्धालुओं ने अपना योगदान दिया है, साथ ही उन्होंने राजर्षि जनकानंद, श्री दया माताजी, श्री मृणालिनी माता जी, और स्वामी श्यामानंद जी जैसी महान आत्माओं के विशेष योगदान पर प्रकाश डाला जिन्होंने योगदा के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | स्वामी ईश्वरानन्द ने भी श्री मृणालिनी माता जी के संदेश के अंकित विभिन्न बिन्दुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला |
स्वामी शांतात्मानंद जी द्वारा दिए गए व्याख्यानों से गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानंद के प्रति उनकी अपार श्रद्धा एवं गहन सम्बन्ध का परिचय प्राप्त हुआ | अपने व्याख्यानों में उन्होंने पौराणिक होमा पक्षी का उदाहरण दिया जो अपने अंडे हवा में अत्यंत ऊँचाई में देती है, जमीन पर गिरने से पहले वो इसे सेती है जिससे बच्चे बाहर निकलते है | इन बच्चों को जैसे ही पता चलता है कि ये जमीन पर गिरने वाले हैं और इनके प्राण जोखिम में है वैसे ही ये अपने प्राण बचाने के लिए हवा में उड़ान भरने लगते है और सुरक्षित ऊंचाइयों तक पहुँच जाते हैं | स्वामीजी ने कहा कि दुर्लभ महान आत्माओं जैसे श्री परमहंस योगानंद जी का जीवन भी इसी प्रकार रहा है, जिसकी चेतना कभी भी पृथ्वी का स्पर्श नहीं की; वे ऐसे उच्च स्थान पर हैं जहाँ हर किसी को ले जाने के लिए प्रयास करते हैं | स्वामीजी के प्रवचनों की गहराई से सराहना की गई | अपने व्याख्यानों में मुख्य रूप से उन्होंने गुरू द्वारा दी गई साधना के श्रद्धापूर्वक पालन पर तथा इनके महत्व पर बल दिया, जिसके बिना कोई प्रगति संभव नहीं है |
प्रवचन के अंत में स्वामी शांतात्मानंद जी को भेंट स्वरुप एक शाल, योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर तथा श्री भगवद्गीता के गुरुजी के व्याख्या की एक प्रति, "God Talks with Arjuna" दिया गया तथा स्वामी ललितानंद जी द्वारा उनके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया गया | अंत में, गुरुदेव के वचनामृत की एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनाई गयी, जिससे इस अवसर पर उपस्थित भक्तों और मेहमानों ने गुरुदेव की उपस्थिति तथा उनके आशिर्वाद को और भी स्पष्ट रूप से अनुभव किया |
इस शुभ अवसर पर लगभग ११०० श्रद्धालुओं ने भाग लिया तथा प्रकाश ज्योति से भव्य रूप से सुसज्जित आश्रम, बगीचे तथा यहाँ के दिव्य वातावरण का आनंद लिया | गुरु लंगर जिसमें विशेष प्रसाद की व्यवस्था की गयी थी, की ओर बढ़ने के पूर्व भक्तों एवं मेहमानों ने आश्रम परिसर में कुछ क्षण रूककर यहाँ के दिव्य स्पंदनों का आनंद लिया | सभी भक्तगण आनंद एवं उत्साह से भरपूर थे जो उनके चेहरे से स्पष्ट रूप से झलक रहा था; ऐसा लग रहा था जैसे गुरुजी ने अपने दिव्य प्रेम और असीम आनन्द के साथ उनमें से हर एक को स्पर्श किया हो जिससे इस दिव्य प्रेम की गाथा निरंतर बनी रहे |